बंगाल विभाजन–Partition of Bengal 1905 (Complete Analysis in Hindi )

बंगाल विभाजन–Partition of Bengal 1905 (Complete Analysis in Hindi )

बंगाल विभाजन–Partition of Bengal 1905 (Complete Analysis in Hindi )

बंगाल विभाजन – दोस्तों, आज हम बंगाल विभाजन के संबंध में जानेंगे, जिसके कर्ता-धर्ता लॉर्ड कर्जन थे, इस विभाजन से अंग्रेजों का उद्देश्य भारतीयों में हिन्दू और मुस्लिम को अलग करना और सबसे महत्वपूर्ण भारतीयों के स्वतंत्रता संग्राम को कमज़ोर करना था। 


बंगाल विभाजन की पृष्ठभूमि 

लॉर्ड कर्जन भारत में 1899 में वायसराय के पद पर आए थे और 1905 तक इस पद पर रहे थे। 

इस समय भारतीयों के अंदर राष्ट्रवाद जन्म ले रहा था और धीरे-धीरे यह राष्ट्रवाद भारत में बढ़ भी रहा था और इस राष्ट्रवाद का मुख्य केंद्र उस समय बंगाल था। 

अंग्रेजों को भारतीयों की बढ़ती राष्ट्रवाद की भावना का आभास हो गया था और यह उनके लिए एक बड़े खतरे का संकेत था और इसीलिए अंग्रेजों ने इस बढ़ती हुई विद्रोह की भावना को दबाने और रोकने के लिए योजना बनाई की बंगाल के क्षेत्र को विभाजित कर दिया जाए, जिसे हम बंगाल विभाजन के नाम से जानते हैं। 

तब 1903 में अंग्रेजों की तरफ से लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव रखा गया था और उस समय बंगाल आज के वर्तमान बंगाल जितना छोटा नहीं था बल्कि उस समय यह बंगाल बहुत सारे क्षेत्रों से मिलकर बना था जैसे असम, ओड़िसा, बिहार और छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्र। 

लॉर्ड कर्जन ने अंग्रेजों की तरफ से बंगाल विभाजन के प्रस्ताव को लेकर जो बिंदु रखे, वे कुछ इस प्रकार हैं:

  1. उस समय बंगाल की जनसंख्या 7.5 करोड़ थी, और उस समय यह भारत की ¼ जनसंख्या के बराबर थी, इसलिए ब्रिटिश सरकार द्वारा इतनी बड़ी आबादी को संभालना थोड़ा कठिन है इसलिए बंगाल का विभाजन किया जाए।
  2. पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल में पूरे बंगाल को बांटने का प्रस्ताव दिया गया जिसमें पूर्वी बंगाल की राजधानी ढ़ाका को बनाया गया और पश्चिमी बंगाल की राजधानी कलकत्ता को बनाया गया।

इसमें अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति ( Divide and Rule Policy ) भी हमें देखने को मिलती है क्यूंकि जो पूर्वी बंगाल था उसमें मुस्लिम समुदाय के लोग सर्वाधिक थे जबकि पश्चिमी बंगाल में हिन्दू समुदाय के लोग सर्वाधिक थे और इस बंगाल विभाजन से अंग्रेज हिन्दू और मुस्लिमों को आपस में लड़वाकर खुद राज करना चाहते थे। 

बंगाल विभाजन को लेकर विरोध 

दिसंबर 1903 में जैसे ही भारतीय नेताओं को बंगाल के विभाजन की सूचना मिली, तब पूरे बंगाल में अंग्रेजों के इस प्रस्ताव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। 

बंगाल के प्रभावशाली नेता जैसे कृष्ण कुमार मित्र और सुरेंद्र नाथ बनर्जी द्वारा बहुत प्रभावशाली तरीके से इस प्रस्ताव का विरोध किया गया और इस विरोध को फैलाने के लिए कृष्ण कुमार मित्र और सुरेंद्र नाथ बनर्जी द्वारा उनके अपने समाचार पत्रों जैसे हितबदी और बंगाली से बहुत बड़े प्रेस अभियान ( Press Campaign ) चलाए गए थे। 

इन प्रेस अभियानों का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अंग्रेजों के इस बंगाल के विभाजन के प्रस्ताव के परिणामों से भारतीयों को अवगत और जागरूक कराना था। 

इसका असर भी देखने को मिला और हज़ारों की संख्या में लोगों ने इस बंगाल विभाजन के विरुद्ध ब्रिटिश सरकार को याचिका भेजनी शुरू कर दी थी। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी अपने स्तर से सार्वजनिक बैठकों, भाषणों और याचिकाओं द्वारा लोगों को इस विभाजन के विरुद्ध खड़ा कर रही थी। 

इस विरोध में वे जमींदार जो अंग्रेजों के अनुरूप ही कार्य करते थे, वे भी इस विभाजन के विरोध में कांग्रेस के साथ शामिल हो गए थे। 

इतने सारे विरोधों के बाद भी अंग्रेजों पर इन विरोधों का खास असर नहीं हुआ था और अंग्रेजों ने तब बंगाल विभाजन के लिए जुलाई 1905 की तिथि को प्रकाशित कर दिया था। 

इसके साथ-साथ कांग्रेस जो शुरू से ही अपने नरम स्वभाव के साथ अंग्रेजों से पेश आती थी उससे लोगों का विश्वाश धीरे-धीरे कम होता जा रहा था और अब यह लगने लगा था की अब नरमी से नहीं कुछ ठोस तरीकों के साथ अंग्रेजों का विरोध करना पड़ेगा। 

बंगाल विभाजन के विरोध के समय कुछ बड़े नेता सामने निकल कर आए थे जो भारतीयों का अलग-अलग क्षेत्रों से नेतृत्व कर रहे थे जैसे:

  1. बाल गंगाधर तिलक, यह बॉम्बे और पुणे जैसे क्षेत्रों में लोगों का इस विभाजन के खिलाफ नेतृत्व कर रहे थे।
  2. लाला लाजपत राय और अजीत सिंह, यह पंजाब और उत्तरी भारत में लोगों का नेतृत्व कर रहे थे।
  3. चिदंबरम पिल्लई, यह मद्रास क्षेत्र में लोगों का नेतृत्व कर रहे थे।बंगाल विभाजन – Partition of Bengal in Hindi

स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन ( Swadeshi and Boycott Movement )

बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिए बंगाल में बहुत सारी बैठकों का आयोजन किया गया था और यह निर्णय लिया गया की अब से अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाएगा अर्थात अब कोई भी अब अंग्रेजी वस्तुओं को नहीं खरीदेगा और न ही उन्हें इस्तेमाल करेगा। 

लेकिन इसमें समस्या यह थी की जबसे अंग्रेजी वस्तुओं का प्रभाव भारत में पड़ रहा था तब से भारत में बनने वाली वस्तुएँ और उद्योग भी कम होने लग गए थे और इसलिए भारतीयों को भारत में बनी हुई वस्तुएँ प्रदान करने के लिए बहुत ही कम विकल्प थे। 

इस समस्या का समाधान करने के लिए समाज में रह रहे धनवान लोगों द्वारा फैक्ट्रियों को स्थापित किया गया जहां भारतीय वस्तुओं को बनाया जाए, इसके साथ ज्ञान देने के लिए स्कूल और कॉलेज भी शुरू किए गए ताकि लोगों को अच्छी विद्या दी जा सके। 

इस विरोध को स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नाम से जाना गया क्यूंकि इसमें भारतीयों द्वारा भारतीय वस्तुओं को इस्तेमाल करने पर ज़ोर दिया गया और साथ ही अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार भी किया गया था और आंदोलन 1905 से लेकर 1911 तक चला था। 

इस आंदोलन का प्रचार-प्रसार करने के लिए त्योहारों और मेलों का सहयोग लिया गया था और बाल गंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणपति और छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्सवों का आयोजन करवाया ताकि बहुत सारे लोग इस आंदोलन से जुड़ पाएं। 

सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने भी पूरे भारत में घूमकर लोगों में इसका प्रचार किया की अंग्रेजी वस्तुओं का त्याग करें और भारतीय वस्तुओं को ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें। 

ब्रिटेन से आने वाले नमक का भी बहिष्कार करने की बात कही गई थी। 

बंगाल विभाजन ( 1905 )

जैसे की हमने ऊपर भी चर्चा की थी की इतने सारे विरोध और आंदोलन के बाद भी अंग्रेजो पर इसका कोई असर नहीं हुआ था और जैसे की उन्होंने 1905 में बंगाल विभाजन की तिथि को प्रकाशित किया था, इसके तहत अंग्रेजों द्वारा 16 अक्टूबर, 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया गया था। 

इस फैसले के विरोध में भारी संख्या में लोग सड़को पर वन्दे मातरम करते हुए जाने लगे थे और धीरे-धीरे वन्दे मातरम को स्वदेशी आंदोलन का मुख्य धुन या गीत बना दिया गया था। 

देश भर में लोगों द्वारा अंग्रेजी कपड़ो को जलाया जाने लग गया था और धोबियों ने भी अंग्रेजी कपड़ों को लेने से मना कर दिया था। 

कांग्रेस के अंदर भी उसके बंगाल विभाजन के विरोध की रणनीतियों को लेकर नरम दल और गरम दल के नेताओं में मतभेद शुरू हो गए थे। 

स्वदेशी आंदोलन का पतन 

1907 में कांग्रेस के अंदर भी नरम दल और गरम दल में विभाजन हो गया था जिसके कारण स्वदेशी आंदोलन को भी इससे काफी नुकसान हुआ था। 

बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन के पतन के मुख्य कारणों में से एक कांग्रेस के अंदर चल रही कलह थी। 

ब्रिटिश सरकार द्वारा समाचार पत्रों और सार्वजनिक बैठकों को बंद करने के आदेश दे दिए गए थे और ज्यादातर नेताओं को कैद कर लिया गया था। 

जो बड़े नेता अंग्रेजों द्वारा इस आंदोलन के दौरान कैद किए गए थे, वे कुछ इस प्रकार थे:

  1. बाल गंगाधर तिलक जी को 6 वर्ष की कैद में मैंडेली जेल, बर्मा में भेज दिया गया था।
  2. अजीत सिंह
  3. चिदंबरम पिल्लई
  4. अरबिंदो घोष, इन्हें जेल नहीं हुई थी, क्योंकि इन पर साजिश का मामला चलाया गया था जिससे यह बरी हो गए थे, परंतु कार्यवाही के दौरान इनको अंग्रेजों द्वारा बहुत परेशान किया गया और बरी होने के बाद इन्होंने और कांग्रेस के गरम दल के नेता बिपिन चंद्र पाल ने राजनीती से संन्यास ले लिया था। बंगाल विभाजन – Partition of Bengal in Hindi

इसके साथ-साथ लाला लाजपत राय भी कांग्रेस के नरम दल और गरम दल में बटने के बाद ही ब्रिटेन चले गए थे और उसके बाद अमेरिका चले गए थे। 

1908 तक कोई भी बड़ा नेता इस स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन में नहीं बचा था। 

इसके साथ-साथ इस स्वदेशी आंदोलन के प्रचार के लिए हिन्दू त्योहारों का सहयोग लिया गया था जिसके कारण मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्ग इस आंदोलन को शंका के साथ देख रहे थे। 

इन सब कारणों की वजह से यह आंदोलन धीरे-धीरे कमज़ोर होता चला गया और अंत में ख़त्म हो गया था। 

बंगाल विभाजन – Partition of Bengal in Hindi

हम आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई बंगाल विभाजन – Partition of Bengal in Hindi के बारे में  जानकारी आपके लिए बहुत उपयोगी होगी और आप इससे बहुत लाभ उठाएंगे। हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं और आपका हर सपना सच हो।

बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

बंगाल का विभाजन कब और क्यों किया गया?

अंग्रेजों द्वारा 16 अक्टूबर, 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया गया था, इस विभाजन से अंग्रेजों का उद्देश्य भारतीयों में हिन्दू और मुस्लिम को अलग करना और सबसे महत्वपूर्ण भारतीयों के स्वतंत्रता संग्राम को कमज़ोर करना था। 

बंगाल विभाजन के समय वायसराय कौन था?

लॉर्ड कर्जन भारत में 1899 में वायसराय के पद पर आए थे और 1905 तक इस पद पर रहे थे। 

लॉर्ड कर्जन बंगाल का विभाजन क्यों चाहता था?

लॉर्ड कर्जन ने अंग्रेजों की तरफ से बंगाल विभाजन के प्रस्ताव को लेकर जो बिंदु रखे, वे कुछ इस प्रकार हैं:
1. बंगाल की जनसंख्या 7.5 करोड़ है, और उस समय यह  भारत की ¼ जनसंख्या के बराबर थी, इसलिए ब्रिटिश सरकार द्वारा इतनी बड़ी आबादी को संभालना थोड़ा कठिन है इसलिए बंगाल का विभाजन किया जाए।

बंगाल विभाजन के बाद कौन सा आंदोलन शुरू हुआ?

बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिए बंगाल में बहुत सारी बैठकों का आयोजन किया गया था और यह निर्णय लिया गया की अब से अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाएगा अर्थात अब कोई भी अब अंग्रेजी वस्तुओं को नहीं खरीदेगा और न ही उन्हें इस्तेमाल करेगा। इस विरोध को स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नाम से जाना गया।

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