HP Current Affairs Daily - 31 January 2023 in Hindi
ICAR prepared wheat seed for the hilly states of northern India Production will increase
आईसीएआर ने उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्यों के लिए तैयार किया गेहूं का बीज, बढ़ेगा उत्पादन
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) शिमला ने उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्यों के लिए गेहूं का बीज तैयार किया है।
- किसान इस हाईब्रीड शिमला-562 बीज से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन कर पाएंगे। अभी तक इन राज्यों में प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल उत्पादन ही हो रहा था।
- गेहूं के इस बीज का हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के किसानों को लाभ मिलेगा। इन राज्यों के जिन क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, वहां किसान इस बीज से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी कर सकते हैं।
- आईसीएआर के शिमला के वैज्ञानिकों ने यह हाईब्रीड बीज तीनों पहाड़ी राज्यों के लिए विकसित किया है।
- इन राज्यों के किसान अब तक जिन बीजों का इस्तेमाल करते रहे हैं, उनसे किसान प्रति हेक्टेयर अधिकतम 20 क्विंटल गेहूं की पैदावार कर पाते थे। जिन क्षेत्रों में किसानों को सिंचाई सुविधा नहीं मिलती थी, वहां गेहूं की पैदावार कम होती थी।
- देश के तीनों पहाड़ी राज्यों के लिए आईसीएआर का शिमला सेंटर 300 क्विंटल गेहूं का ब्रीडर बीज उपलब्ध करवा रहा है। इसमें से हिमाचल को 200 क्विंटल गेहूं का ब्रीडर बीज उपलब्ध कराया गया है।
100 किलो ब्रीडर बीज से तैयार होता है 2,000 क्विंटल बीज
- केंद्र के वैज्ञानिक बताते हैं कि 100 किलो ब्री़डर बीज से पहले साल 2,000 क्विंटल बीज तैयार होता है।
- इस तरह के दो चरणों में बीज तैयार करने के बाद किसानों को उपलब्ध कराया जाता है।
- संस्थान ब्रीडर बीज 65 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से राज्य सरकारों को उपलब्ध करवा रहा है।
तीनों पर्वतीय राज्यों में 10 लाख हेक्टेयर भूमि में होती है गेहूं की पैदावार
- देश के तीनों पर्वतीय राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में कुल 10 लाख हेक्टेयर भूमि में किसान गेहूं की पैदावार करते हैं।
- हिमाचल में करीब 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं का उत्पादन किया जाता है।
- ऊना, सिरमौर, कांगड़ा आदि क्षेत्रों में जहां सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, वहां के किसान इस बीज से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गेहूं पैदा कर सकते हैं।
After Mandi, now drone will provide health services in the entire state
मंडी के बाद अब पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं देगा ड्रोन
मंडी जिले में स्वास्थ्य क्षेत्र में ड्रोन की सेवाएं बेहतर तरीके से लागू करने के बाद अब पूरे प्रदेश में ड्रोन से सेवाएं लेने के लिए प्रोजेक्ट शुरू कर दिया गया है।
- इसके लिए अब वीटॉल ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा जो कि लंबी दूरी की उड़ानें भरने में सक्षम है।
- यह करीब 300 किलोमीटर तक की दूरी तय करने में कारगर है।
- यह ड्रोन आने वाले एक सप्ताह के भीतर मंडी से कुल्लू, हमीरपुर और शिमला के रामपुर तक स्वास्थ्य क्षेत्र में वैक्सीन, दवाइयां, खून के सैंपल और टेस्ट रिपोर्ट सहित अन्य सामग्री के आदान-प्रदान करने में प्रयोग किया जाएगा।
- इसके लिए स्वास्थ्य विभाग मंडी ने सभी तैयारियों को पूरा कर लिया है। क्योंकि हिमाचल प्रदेश को ड्रोन टेक्नोलॉजी का विभिन्न कार्यों व विभाग में प्रयोग करने का पूरे देश में श्रेय है, ऐसे में जिला मंडी से ही स्वास्थ्य क्षेत्र में ड्रोन के प्रयोग को सफलता मिली है। मंडी को ही इस प्रोजेक्ट का पूरा कार्यभार मिला है।
- प्रोजेक्ट के संयोजक एवं कार्यक्रम अधिकारी डॉ. विशाल ने बताया कि एक सप्ताह के भीतर अंतर जिला में ड्रोन का प्रयोग दवाइयां, सैंपल, टेस्ट रिपोर्ट सहित अन्य सामग्री लाने और ले जाने में किया जाएगा।
- वहीं, सीएमओ मंडी डॉ. देवेंद्र ने कहा कि जिला में ड्रोन का प्रयोग किया जा रहा है और इस प्रोजेक्ट को अब पूरे प्रदेश में शुरू किया जा रहा है। इससे मरीजों को बेहतर और कम समय में सेवाएं मिलेंगी।
अब तक तीन प्रकार के ड्रोन का हो चुका है प्रयोग
- जिला मंडी में अब तक तीन प्रकार के ड्रोन का इस्तेमाल स्वास्थ्य विभाग कर चुका है।
- इसमें क्वार्ड कॉप्टर, हैक्जा कॉप्टर और ओक्टा कॉप्टर शामिल हैं।
- इन सभी ड्रोन का प्रयोग कम दूरी के लिए किया जा रहा था और इनमें बैटरी भी अधिक खर्च होती है।
- अब लंबी दूरी के लिए वीटॉल कॉप्टर का इस्तेमाल किया जाएगा।
- यह जमीन से तो एक ड्रोन की तरह उड़ान भरता है, मगर आसमान में यह प्लेन की तरह चलता है और लंबी दूरी तय करता है।
- बाद में यह लैंडिंग भी ड्रोन की तरह ही करेगा। इसमें बैटरी भी कम ही प्रयोग होती है।
नेशनल स्वास्थ्य मिशन का क्रस्ना लैब से करार
- ड्रोन के माध्यम से अब टेस्ट के लिए खून के सैंपल लेना और रिपोर्ट देना भी सुगम हो गया है।
- क्रस्ना डायनोस्टिक लैब द्वारा नेशनल स्वास्थ्य मिशन (NHM) के साथ करार के बाद अब नेरचौक मेडिकल कॉलेज में स्थित लैब के हब तक मंडी और कुल्लू जिलों से टेस्ट के लिए खून के सैंपल ड्रोन के माध्यम से पहुंचाए जा रहे हैं।
- इससे टेस्ट रिपोर्ट मरीजों को तुरंत मिल रही है। लोगों को पहले तीसरे दिन रिपोर्ट मिलती थी।
Dharamshala Hospital became the first institute of Himachal with NQAS certification
एनक्यूएएस प्रामाणिकता वाला हिमाचल का पहला संस्थान बना धर्मशाला अस्पताल
बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए प्रयासरत क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला के नाम सोमवार को दो बड़ी उपलब्धियां जुड़ी हैं।
- क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों (एनक्यूएएस) के अनुसार प्रमाणित हो गया है।
- केंद्र से आई विशेषज्ञों की टीम के मूल्यांकन में धर्मशाला को 92 अंक मिले हैं। स्वास्थ्य विभाग ने सोमवार को इसकी घोषणा की।
- रिपोर्ट में 90 फीसदी से अधिक अंक हासिल करने वाले अस्पतालों ‘लक्ष्य’ प्रमाणन के लिए भी क्वालिफाई कर लिया है।
- इस लिहाज से क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला ने एनक्यूएएस के साथ लक्ष्य प्रमाणन की भी बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
- क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला एनक्यूएएस प्रामाणिकता वाला हिमाचल प्रदेश का पहला संस्थान बन गया है।
- राष्ट्रीय स्तर के एनक्यूएएस प्रमाणन में सफल होने वाले अस्पताल को केंद्र सरकार की ओर से अस्पताल के प्रति बिस्तर के हिसाब से दस हजार रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है।
- अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजेश गुलेरी और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. अजय दत्ता ने बताया कि क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला में 300 बिस्तर की व्यवस्था है। इस लिहाज से आने वाले तीन वर्षों तक हर साल अस्पताल को 30 लाख रुपये की आर्थिक मदद मिलेगी। इस धनराशि को अस्पताल में सुविधाओं को और सुदृढ़ बनाने के लिए प्रयास किया जाएगा।
आयुष्मान भारत पैकेज के तहत मिलेगी 15 फीसदी अतिरिक्त मदद
- राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों (एनक्यूएएस) के अनुसार प्रमाणित होने के बाद क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला को केंद्र सरकार से आयुष्मान भारत योजना के तहत मिलने वाले पैकेज में 15 फीसदी अतिरिक्त मदद मिलेगी।
- लक्ष्य प्रमाणन के लिए धर्मशाला अस्पताल को सालाना तीन लाख रुपये की अतिरिक्त मदद मिलेगी।
Dragon fruit cultivation in Una to boost farm income
कृषि आय बढ़ाने के लिए ऊना में ड्रैगन फ्रूट की खेती
डीसी राघव शर्मा ने कहा है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि विदेशी फल का उच्च बाजार मूल्य प्राप्त होता है, यह कहते हुए कि जिले की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त थी जैसा कि पिछले साल किए गए क्षेत्र परीक्षणों के दौरान पाया गया है।
- शर्मा ने कहा कि पिछले वर्ष बंगाणा अनुमंडल के 14 ग्राम पंचायत क्षेत्रों में 1.72 हेक्टेयर में 3,784 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए गए थे और 43 प्रगतिशील किसानों ने इसकी खेती की थी.
- उन्होंने कहा कि पौधों की वृद्धि और प्रगति अच्छी पाई गई है, उन्होंने कहा कि ऊना, गगरेट, हरोली और अंब के अन्य अनुमंडलों में भी ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।
- डीसी ने आगे कहा कि पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत ड्रैगन फ्रूट की खेती को भी बढ़ावा दिया जाएगा. “इच्छुक किसान अपने संबंधित ग्राम पंचायतों से संपर्क कर सकते हैं।
- मनरेगा के तहत पौधों के वितरण के तौर-तरीकों पर काम किया जा रहा है।
70 plastic dumps identified in Himachal via satellite imagery
सैटेलाइट इमेजरी के जरिए हिमाचल में 70 प्लास्टिक डंप की पहचान की गई
बेरहमी से फेंके जाने वाले प्लास्टिक कचरे का तेजी से निपटान सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीईएसटी) ने उपग्रह इमेजरी का उपयोग करते हुए राज्य भर में 70 साइटों की पहचान की है।
- राज्य भर से प्राप्त कचरे की छवियों के वैज्ञानिक विश्लेषण के बाद डीईएसटी के अधिकारियों द्वारा किए गए विस्तृत अभ्यास को पूरा किया गया।
- “चूंकि विभाग के पास उपग्रह उपयोग के लिए लाइसेंस है, इसलिए इसे मुख्य सचिव से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद डीईएसटी द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट स्थलों की पहचान करने के लिए उपयोग में लाया गया था।
- यह देश में इस तरह का पहला प्रयास है जहां प्लास्टिक कचरे की पहचान के लिए सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया गया है।
- एक बार पहचाने जाने के बाद, डीईएसटी के अधिकारी कचरे के वैज्ञानिक निपटान को सुनिश्चित करने के लिए उपायुक्तों के अलावा छावनी बोर्ड के अधिकारियों, शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में कार्यकारी अधिकारियों और ग्रामीण क्षेत्रों में खंड विकास अधिकारियों सहित स्थानीय अधिकारियों को साइटों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
- “दो आदिवासी जिलों को छोड़कर, 10 जिलों में 70 ऐसे स्थलों की पहचान की गई है। इन डंपों के बारे में स्थानीय अधिकारियों को अवगत कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, ”जैन ने कहा।
- उन्होंने कहा कि इस कवायद के माध्यम से प्लास्टिक कचरे के उचित निपटान को सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता पैदा की जा रही है क्योंकि यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। देखा गया है कि इन स्थलों पर वर्षों से कचरे के ढेर जमा हैं।
- अधिकृत एजेंसियों से निविदाएं आमंत्रित करने के बाद वर्षों से जमा हुए पुराने कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया जाना है। उपग्रह इमेजरी का उपयोग करके साइटों का पुनरीक्षण करने से पहले छह महीने की अवधि दी जाएगी, ”जैन ने कहा।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पुराने कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए हैं क्योंकि वर्षों से इसके संचयन से हानिकारक गैसों का उत्पादन होता है। ग्रामीण इलाकों में मवेशियों को अक्सर ऐसे स्थलों से गुजरते देखा जाता है। प्लास्टिक कचरा खाने से मवेशियों की मौत के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं।
- शिमला में सबसे ज्यादा 17, कांगड़ा और हमीरपुर में नौ-नौ, बिलासपुर और मंडी में सात-सात, चंबा और ऊना में पांच-पांच और सोलन और कुल्लू में चार-चार स्थलों की पहचान की गई है। सोलन, बद्दी, सुंदरनगर, पपरोला, धर्मशाला, रोहड़ू, बिलासपुर, चौवारी, संतोखगढ़, मनाली, कुल्लू, डलहौजी, मंडी, सरकाघाट और रिवालसर और सिरमौर जिले में तीन ऐसे स्थलों की पहचान की गई है।
CHECK HERE DAILY HP GK & CURRENT AFFAIRS
Candidates can leave their comments in the comment box. Any queries & Comments will be highly welcomed. Our Panel will try to solve your query. Keep Updating Yourself.